विश्व विख्यात अष्टमुखी भगवान श्री पशुपतिनाथ मंदिर शिवना नदी के तट पर जिला मन्दसौर, मध्य प्रदेश, भारत में स्थित है। पशुपतिनाथ मनोकमना पूर्ण करने वाले भगवान है। यहा पर अभिषेक करने वालो की मनोकामना पूर्ण होती है। इस हेतु इन्हे मनोकामना पूर्ण करने वाले पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है।

श्री पशुपतिनाथ का इतिहास

अष्टमुखी भगवान श्री पशुपतिनाथ महादेव मालवांचंल की सांस्कृतिक पहचान हैं। चमकदार गहरे ताम्रवर्णीय आग्नेय शिलाखण्ड से निर्मित यह प्रतिमा सदियों पूर्व में शिवना नदी की गोद में समाई हुई थी। प्रचण्ड ग्रिष्मकाल में जब शिवना नदी का पानी सुख जाता है और व्यवसाई लोगों के द्वारा लगातार रेत का खनन करने के कारण इस प्रतिमा का कुछ अंश सर्वप्रथम उदाजी धोबी को 10 जुन 1940 में दिखाई दिया। इस प्रतिमा को नदी के गर्भ में दबी अवस्था में उन्होने चिमन चिश्ती की दरगाह के सामने देखा था। यह प्रतिमा खुले परिसर में 21 वर्ष 5 माह तक पडी रही। इसके बाद 1961 में मंदिर का निर्माण कर मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई। प्रतिमा का वजन 46 क्विंटल , ऊँचाई साढ़े 7 फीट गौलाई 11 फीट हैं।
माना जाता है कि मुर्ति का निर्माणकाल सम्राट यषोधर्मन की हूणांे पर विजय के आसपास विक्रम संवत 575 ई़़. में रहा होगा । संभवतः मुर्तिभंजकों से सुरक्षित रखने की दृष्टि से इसे शिवना नदी में दबा दिया था।

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अष्टमूखी भगवान श्री पशुपतिनाथ के मुखो का विवरण

भगवान शिव की इन अष्ट मुखों के नाम शर्व , भव , रूद्र , उग्र , भीम , पशुपति , महादेव और ईशान हैं। ये ही अष्टमुर्ति पृथ्वी , जल , अग्नि वायु , आकाश , यजमान (आत्मा/क्षैत्रज्ञ) , सूर्य और चन्द्रमा को अधिष्ठित किये हुवे र्हैं। अर्थात भगवान शिव के रूप में सूर्य एवं चन्द्रमा प्रत्यक्ष देवता हैं तथा पृथ्वी , जल , वायु , अग्नि आकाश ये पॉच सूक्ष्म तत्व है जिवात्मा यजमान रूप में यज्ञ (उपासना) करने वाला हैं।

पूर्व मुख :- जीवन की बाल्यावस्था का प्रतीक हैं। घुंघराले बाल , मोर पंख धारण किये नागनागिन का जोड़ा कुण्ड़ल के रूप में भुजं़ग माला पहने शिव बाल सदृश लगते हैं। यह मुख शांत रस को प्रकट करता हैं।